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कोई एक हजार किलोमीटर चलकर घर पहुंचा, तो किसी ने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ा

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लखनऊ. कोरोना संक्रमण की वजह से 21 दिन के लॉकडाउन से सबसे ज्यादा परेशानी श्रमिक वर्ग को हो रही है।ये लोग अपने परिवार के गुजर बसर के लिए अपनों से दूर दूसरे शहरों में दिहाड़ी का काम करते हैं। जहां ये लोग हैं वहां अब काम न होने की वजह से उनके साथ उनके परिवारों के लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। पिछले दो दिनों से श्रमिक पैदल ही वापस अपने घरों की तरफ लौट रहे हैं। आलम यह है कि कोई एक हजार किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद भी घर पहुंचने में कामयाब रहा तो किसी ने अपनों के पास पहुंचने से पहले रास्ते में ही दम तोड़ दिया। पढ़ेश्रमिकों के वापस लौटने की ऐसी पांच कहानियां…

झांसी: अहमदाबाद से पैदल चलकर आए तीन दर्जन मजदूर

शुक्रवार देर रात करीबतीन दर्जन मजदूर पैदल चले जा रहे थे। उन्हें बुंदेलखंड के अलग-अलग जनपदों तक पहुंचना था। अहमदाबाद की एक फैक्ट्री में काम करने वाले राजेश पाल बताते हैं,”मैं जालौन का रहने वाला हूं। बुंदेलखंड में रोजगार की व्यवस्था ना होने की वजह से अहमदाबाद की एक साड़ी फैक्ट्री में काम करता हूं। अचानक से लॉकडाउन कर दिया गया और हम बेरोजगार हो गए। वहां भूखों मरने से अच्छा घर आने की सोची तब तक परिवहन के सारे साधन बंद कर दिए गए। अब हमारे सामने दो ही विकल्प थे, या तो वहां भूख से मरते, या फिर 1000 किलोमीटर का सफर करके अपने घर तक पहुंचते।हमने पैदल चलना ही उचित समझा।” अजय निषाद ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, ”मैं अहमदाबाद की एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता था। जब लॉकडाउन हुआ तो हमें वहां से भगा दिया गया। अब हमारे पास न कोई काम था और न पेट भरने के लिए पैसे। हम अहमदाबाद से हमीरपुर के लिए पैदल चल दिए। बीच-बीच में कुछ लोगों ने हमें थोड़ी दूर के लिए लिफ्ट भी दी। लेकिन,खाना वही खाया जो हम वहां से बांधकर चले थे। जब झांसी शहर पहुंचे तो यहां कुछ वॉलिंटियर्स ने हमें पूरी और सब्जी खिलाई। इसके अलावा उन्होंने कहा कि आप बस स्टैंड पहुंचे हम आपके घर पहुंचाने का इंतजाम करते हैं।”

मुरैना जा रहे मजदूर ने आगरा में दम तोड़ा
ल्ली से पैदल चलकर एमपी के मुरैना जाने की चाहत लिए रणवीर सिंह की मौत आगरा पहुंचते ही हो गई। उसके साथियों ने बताया किवोदो दिन पहले दिल्ली से चला था। शनिवार सुबह आगरा पहुंच कर उसकी मौत हो गईहै। लोग हार्टअटैक की संभावना जता रहे हैं। फिलहाल मौके पर पहुंची पुलिस पोस्टमार्टम के लिए शव को अपने कब्जे में ले चुकी है।भवर सिंह झांसी पहुंचे हैं। उन्हेंझांसी के आगे जाना है। वो बतातेहैं कि रास्ते में लोगों नेपूरी और चावल दिए थे। वही सब खाकर तीन दिन का रास्ता कट गया है। अभी और आगे जाना है। देखते हैं क्या होता है।

आगरा: कानपुर से तीन दिन पैदल चलकर पहुंचे

आगरा बस स्टैंड पर बैठे मुकेश बताते हैं- 3 दिन पहले कानपुर से चले थे। सुबह में आगरा पहुंचे हैं। अभी आगरा से आगे जाना है। उन्होंने बताया कि टाइल्स पत्थर का काम करते हैं। वहां काम बंद हो गया। जेब मे थोड़े बहुत पैसे बचे थे, लेकिन कालाबाजारी की वजह से सब इतना महंगा था कि जरूरत का सामान भी नहीं खरीद सकते थे। इस वजह से घर जाना ज्यादा उचित लगा। रास्ते मे कुछ भले लोगों ने खाने की व्यवस्था कर दी जिससे राहत मिल गईहै।साइकिल पर पीछे बैग और आगे छोटा सा बच्चा बिठाए रामसिंह हरियाणा के रोहतक से आगरा तीन दिन में पहुंचे हैं। परिवार के अन्य लोग पैदल-पैदल आ रहे हैं। अभी उन्हें झांसी के आगे किसी गांव में जाना है। जेब मे पैसे भी नही बचे हैं कि बच्चे के दूध का इंतजाम भी कर सके।

अयोध्या; भूखे प्यासे पैदल लंबी दूरी तय कर पहुंचा अपनोंके बीच

दिल्ली से पैदल चलकर पहुंचे अयोध्या के गोसाइगंज
दिल्ली से पैदल चलकर अयोध्या के गोसाइगंज पहुंचा परिवार।

रामदास उर्फ पप्पू का परिवार शुक्रवार को शाम चार बजे गोसाईगंज कस्बे में पहुंचा। उसने आपबीती सुनाते हुएकहा- लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद है। काम बंद होने से जब परिवार भूखमरी के हाल में पहुंच गया तो घर की ओर चल पड़े हैं। लखनऊ से अपने घर अम्बेडकरनगर के जहंगीरगंज थाना इलाके देवरिया गाँव को जा रहे हैं। रामू औरउसके साथ चार बच्चे व पत्नी सहित कुल छह लोग है। ये लोग गुरुवार को रात आठ बजे लखनऊ से चले है। बीच में पुलिस वाले मानवता के नाते किसी ट्रक पर बिठा देते तो दस पन्द्रह किमी का सफर आसानी से कट जाता था। परन्तु उसके बाद फिर पैदल ही एक मात्र विकल्प था। रास्ते में उन्हें कहीं भी भोजन पानी नहीं मिला। कल रातमें रवानगी से पहले केवल रोटी लेकर साथ चले है। जिसे अचार के साथ खा कर पानी पी लेते थे। बताया कि रास्ते काफी लोग पैदल ही अपने अपने घर जाते हुए मिले।

बलिया: पटना से पैदल चले लोग भूख से थे परेशान

पटना से पैदल चलकर बलिया पहुंचे, इन्हें आगे भी जाना है
पटना से पैदल चलकर बलिया पहुंचे, इन्हें आगे भी जाना है

बलिया स्टेशन पर पटना से पैदल पहुंचे कुछ लोग भूख सेपरेशान थे, जिन्हें कांस्टेबल चंदन यादव ने बिस्किट पानी दिया। चंदन ने बताया तीन दिन पहले ये लोग पटना से चले थे। इनको मऊ जाना है। इन लोगों में से एकराजेश ने बताया कि वो पलंबरिंग का काम करता है। पूरा परिवार उसका पटना से 3 दिन पहले पैदल निकला। हम लोगों ने तीन दिन में सिर्फ 2 बार खाना खाया।किसी तरह मऊ घर पहुंचना है। वहीं, दो युवक 22 तारीख की रात को पटना से पैदल चल कर बलिया भरौली पहुंचे हैं।इन लोगों कोसोनभद्र चोपन पैदल ही जाना है। मजदूर पुल्लु के मुताबित राशन खत्म हो गया और पुलिस भी भगा रही थी। इसलिए हम लोग पैदल ही घर जा रहे है,जो किस्मत में होगा वह मिलेगा।

दिल्ली-यूपी बॉर्डर का हाल

जुनैद हरियाणा में काम करते हैं। कल रात 8 बजे 13 लोगों के साथ पैदल चलकर बॉर्डर पर पहुंचे हैं। यहां से उन्हें गोरखपुर जाना है। बस की कोई सुविधा उन्हें दिखाई नहीं पड़ रही है। जेब मे पैसे भी लगभग खत्म हो चुके हैं फिर भी वह नाउम्मीद नहीं है। उनका कहना है यहां तक आ गए तो गोरखपुर भी पहुंच जाएंगे।मऊ के रहने वाले सुखराम गाजियाबाद बच्चे को लेकर उसका इलाज कराने आएथे, लेकिन कोरोनाकी वजह से अस्पताल ने एडमिट करने से मना कर दिया। पिछले शनिवार से वह गाजियाबाद में भटक रहे हैं आज वह बॉर्डर पर बस मिलने की सूचना पर पहुंचे लेकिन वहां से भी वह निराश ही है। वह कहते हैं कि बस नहीं मिली तो पैदल ही जाने की सोच रहा हूं।दिल्ली सदर में पल्लेदारी का काम करने वाले आत्माराम को सिद्धार्थनगर जाना है। लेकिन, कोईसाधन नहीं मिल रहा है। कहते हैं समझ लेंगे कावंड चढ़ाने जा रहे हैं। इसलिए अब पैदल ही जाने की सोच रहे हैं। उनका कहना है कि पैसे खत्म हो गए हैं ऐसे में भूखे मरने से बेहतर है घर पहुंच जाए।

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यूपी-दिल्ली बॉर्डर से अपने घरों के लिए पैदल जाते लोग।