नई दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर गुरुवार को चिंता जताते हुए कहा कि देश में पिछले 4 चुनाव में दागीउम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। कोर्ट ने चुनाव सुधारों को लेकर अहम आदेश में कहा- सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के चयन की वजह बताएं। प्रत्याशियों के खिलाफ दायर मामलों की जानकारी चुनाव आयोग को दी जाए। आदेश का पालन न होने पर आयोग अपने अधिकार के मुताबिक राजनीतिक दलों पर कार्रवाई करे। साथ ही पार्टियां आपराधिक आंकड़ों की जानकारी अखबारों में प्रकाशित कराएं औरफेसबुक/ट्विटर पर साझा करें। राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 माहपहले भी आदेश दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए आदेश पारित करे, ताकि तीन महीने के अंदर राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट देने से रोका जा सके। तब सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने अश्विनीउपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह आदेश दिया था। उपाध्याय की मांग थी कि पार्टियों को अपराधिक छवि वाले लोगों को चुनाव के टिकट देने से रोका जाए। साथ ही उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड अखबारों में प्रकाशित कराने का आदेश दिया जाए।
जनहित याचिकामें क्या था?
उपाध्याय में याचिका में कहा था कि एडीआर की ओर से प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार भारत में राजनीति के अपराधीकरण में बढ़ोतरी हुई है और 24% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में 7,810 प्रत्याशियों का विश्लेषण करने पर पता चला कि इनमें से 1,158 या 15% ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इन प्रत्याशियों में से 610 या 8% के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज थे। इसी तरह, 2014 में 8,163 प्रत्याशियों में से 1398 ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी और इसमें से 889 के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित थे।
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