Home Hindi मौत की सजा का निश्चित होना जरूरी, यह न लगे कि रास्ते...

मौत की सजा का निश्चित होना जरूरी, यह न लगे कि रास्ते खुले हैं और दोषी कभी भी सजा पर सवाल उठा सकता है

119
0

नई दिल्ली. सात लोगों की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तल्ख टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि मौत की सजा का निश्चित होना बेहद जरूरी है। यह सजा पाने वाले दोषी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उसके सामने अभी रास्ते खुले हुए हैं और वह कभी भी सजा को चुनौती दे सकता है।

निर्भया केस के संदर्भ में चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा, ‘‘मौजूदा घटनाओं को देखते हुए यह बेहद जरूरी है। न्यायाधीशों की समाज के प्रति भी जिम्मेदारी है और उन्हें पीड़ितों को न्याय भी दिलवाना है।’’ निर्भया केस में चारों दुष्कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सुना चुकी है, लेकिन दया याचिका और पुनर्विचार याचिका जैसे कानूनी विकल्पों के चलते उन्हें अभी तक फांसी नहीं दी जा सकी है।

दोषियों की पुनर्विचार याचिकापर फैसला सुरक्षित
हत्या के दोषी करार दिए गए शबनम और सलीम ने सजा पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। शबनम और सलीम अपने 7 रिश्तेदारों की हत्या के दोषी करार दिए गए हैं। मृतकों में 10 महीने का बच्चा भी शामिल था। उत्तर प्रदेश के निवासी शबनम और सलीम ने 2008 में परिजन की हत्या इसलिए कर दी थी, क्योंकि वे दोनों के रिश्ते के खिलाफ थे। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया और कहा- कोई व्यक्ति लगातार हर चीज के लिए लड़ाई जारी नहीं रख सकता।

पुनर्विचार याचिका के खिलाफ दलील – जेल में अच्छा व्यवहार नरमी का आधार नहीं

  • दोषियों की तरफ से वकील आनंद ग्रोवर और मीनाक्षी अरोड़ा ने दलीलें दीं। उन्होंने कहा- अदालत को दया दिखानी चाहिए और मौत की सजा को बदलना चाहिए। शबनम और सलीम को अपने आपको बदलने का एक मौका देना चाहिए। दोषी गरीब और अशिक्षित पृष्ठभूमि सेहैं और उन्होंने पहली बार अपराध किया है। ऐसे में उन्हें खुद को बदलने का मौका मिलना चाहिए।
  • यूपी सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- कोई दोषी अपने मां-बाप की हत्या करने के बाद यह कहकर दया नहीं मांग सकता कि अरे! अब मैं अनाथ हो गया हूं। अगर मौत की सजा पाए दोषी के साथ इस आधार पर नरमीदिखाई जाएगी कि जेल में उसका व्यवहार अच्छा था तो हर कोई अपनी याचिका लेकर आ जाएगा। इसके बाद इस तरह के दोषियों के लिए नए कानूनी रास्ते खुल जाएंगे।
  • सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने वकीलों से कहा- हर अपराधी यह कहता है कि उसके दिल में पाप नहीं है। इसके बावजूद हमें अपराध को भी देखना होता है। हम दोषी के जीवन या मौत की सजा पर जोर नहीं देना चाहते हैं। खासतौर पर तब, जब 7 लोगों की जान चली गई हो। सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि अपराध को देखते हुए सजायथोचित होनी चाहिए।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें


New Delhi: Supreme Court: Death penalty is not open ended that can be challenged all the time by condemned prisoners