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जेएनयू, डीयू और जामिया के छात्र बोले- रोजगार और अर्थव्यवस्था मुद्दे होना चाहिए, लेकिन बात हिंदू-मुस्लिम पर हो रही

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नई दिल्ली. देश में इस वक्त नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) कामुद्दागरमाया हुआ है। समर्थन और विरोध दोनों के स्वर सुनाई दे रहेहैं। देश की राजधानी में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव है। नतीजे 11 को आएंगे। दैनिक भास्कर टीम ने दिल्ली कीतीन यूनिवर्सिटीमें जाकर चुनाव और बाकी मुद्दों पर छात्रों की राय जानने की कोशिश की। जेएनयू, डीयू और जामिया मिल्लियासे ग्राउंड रिपोर्ट…

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू)
अनमोल फॉरेन लैंग्वेज फैकल्टी के स्टूडेंट हैं। दिल्ली चुनाव पर कहते हैं, “चुनावी मुद्दा विकास होना चाहिए था। केजरीवाल सरकार ने चंद महीने पहले काम शुरू किया। प्रचार पर आप और भाजपा बराबर पैसा बहा रहीहैं। जनता का पैसा विकास कार्यों पर खर्च क्यों नहीं हुआ?जहां तक सीएए-एनआरसी की बात है तो मेरा स्पष्ट मानना है कि संसद से कोई कानून पारित होने के पहले देश में उस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। केंद्र सरकार बहुमत में है। वो पहले ही तय कर लेती है कि बिल को संसद में पास कराना है। सीएए से सिर्फ मुसलमानों को बाहर रखना गलत है। भेदभाव नहीं होना चाहिए। युवा पीढ़ी को संविधान पढ़ाने के बजाए भड़काऊ भाषण देकर हथियार उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।”

फिलॉसफी में एमए कर रहे प्रतीक कहते हैं, “सरकार हिंदू-मुस्लिम में दरार पैदाकराना चाहती है। बेरोजगारी-इकोनॉमी पर बात क्यों नहीं होती?शाहीन बाग और मुस्लिमों को प्रॉब्लम बताया जा रहा है। सांसद भड़काऊ बयानबाजी कर रहे हैं। आप कहीं न कहीं विकास की बात करती है। लेकिन भाजपा शाहीन बाग पर अटकी है। वो लोगों को बांटकर शासन करना चाहती है।”

दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू)

रूपेश तिवारी डीयू के छात्र हैं। दिल्ली चुनाव पर कहते हैं, “केजरीवाल ने बिजली-पानी फ्री और बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा जैसी योजनाएं पहले लागू क्यों नहीं कीं? चांदनी चौक में हिंदुओं पर हमला हुआ। केजरीवाल ने सहानुभूति क्यों नहीं दिखाई? अब ‘फिर केजरीवाल’ के नारे लगा रहे हैं। दुनिया के हर देश में गद्दारों को गोली मार दी जाती है,लेकिनहमारे देश में ऐसा नहीं है। देश को टुकड़े-टुकड़े करने की बात की जा रही है। केजरीवाल क्यों चुप हैं? मैं भाजपा को पूरा समर्थन देता हूं।”

डीयू लॉ डिपार्टमेंट के विशाल की राय कुछ अलग है। वे कहते हैं, “सीएए आ चुका है। एनआरसी सिर्फ अफवाह है। इतना सब होने के बाद मुझे नहीं लगता किएनआरसी लाया जाएगा। लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं। कहीं गोली चलती है तो यह न्यायसंगत नहीं है। लोकतंत्र में विरोध का अधिकार है। लेकिन, इसकी जानकारी होनी चाहिए। देखना होगा कि कोई कानून संविधान का उल्लंघन तो नहीं है। सीएए में सभी समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए था। दिल्ली में पांच साल में एजुकेशन और हेल्थ सेक्टर में अच्छा काम हुआ।”

कुणाल सिंह कहते हैं, “शाहीन बाग में कड़ी सुरक्षा के बीच कोई बंदूक लेकर कैसे पहुंच गया। यह सब स्क्रिप्टेड है। हालात खराब हैं। आर्थिक तौर पर हम विफल हो चुके हैं। युवाओं के पास नौकरी नहीं हैं। 11 साल में पहली बार जीडीपी इतनीनीचे कैसे गई, जबकि सरकार के पास हर तरह के फंड होते हैं। सीएए सही है, लेकिनएनआरसी गलत। केजरीवाल ने जमीनी स्तर पर अच्छा काम किया है।”

हिना शर्मा के मुताबिक, “प्रोटेस्ट में पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान क्यों पहंचाया गया? जो प्रदर्शन हो रहे हैं, वो शांतिपूर्ण तो नहीं हैं। सीएए-एनआरसी की कोई जरूरत ही नहीं है। मैं नजफगढ़ में रहती हूं। वहां सीवर तक खुले पड़े हैं। चुनाव आने पर हर सरकार कुछ न कुछ करती है। वही ये सरकार भी कर रही है।”

जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी
यहां साहिल से बात होती है। वे कहते हैं, “देश में ऐसा नरेटिव बनाया जा रहा है, ताकि माहौल खराब हो। सरकार ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर चल रही है। सीएए-एनआरसी नहीं आता तो इतना बवाल नहीं होता। छात्रों को शांतिपूर्ण मार्च भी नहीं निकालने दिया जाता। कोई बंदूक लहराता है तो पुलिस देखती रहती है। हम कैसा देश बना रहे हैं? अल्पसंख्यकों को ही निशाना बनाया जा रहा है। शिक्षा, चिकित्सा और विकास चुनावी मुद्दे होने चाहिए। यहां भड़काऊभाषण दिए जा रहे हैं।”

रश्मि कहती हैं,‘‘केजरीवाल ने चार साल कुछ नहीं किया। आखिरी साल में फ्री स्कीम्स निकाल दीं। भाजपा ने भी तो लोकसभा चुनाव में यही किया था।’’

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