बॉलीवुड डेस्क. वैलेंटाइन वीक के दूसरे दिन प्रपोज डे पर निर्देशक महेश भट्ट ने फिल्म एक्ट्रेस परबीन बॉबी से अपने रिश्ते पर खुलकर चर्चा की है। वे कहते हैं, “परवीन बॉबी से मेरे प्रेम, मेरे रिश्ते को लेकर काफी चर्चा हुई, पर मैंने अपने इस रिश्ते को कभी छुपाया नहीं। जब मेरा दिल उनके लिए धड़का, तब वे एक तन्हा औरत थीं। दुनिया ने उनकी सुंदरता, स्टारडम और ग्लैमर देखा था। पर मैंने दरवाजे के पीछे की एक बहुत अकेली औरत को देखा। महेश भट्ट का रिश्ता तो उस तन्हा औरत से हुआ था, उस ग्लैमर गर्ल से कभी नहीं हुआ, जिसको लोग एक बड़ी तारिका के रूप में पहचानते हैं।
‘उनसे मेरा बहुत ही अहम रिश्ता रहा है’
लोग सोचते हैं कि महेश भट्ट कोई स्ट्रगलिंग फिल्ममेकर था, जिसका अपना कुछ था नहीं। उसने उस बड़ी सितारा शख्सियत से इश्क किया और खुद को भी स्टार बना लिया। किसी को नहीं पता कि उनकी अपनी एक जेहनी प्रॉब्लम थी। इसके बाद वे इओसिनोफिलिया की शिकार हो गईं। मैंने उन्हें नॉर्मल स्थिति में लाने की बहुत कोशिश की। लेकिन उन्हें ऐसा जिस्मानी, दिमागी रोग हुआ जिसका जन्म जिस्म के बायोकेमिकल डिसऑर्डर से होता है। मैंने पहले भी इसका जिक्र कई बार किया है। बल्कि मेरी कुछ काफी फिल्मों में उसका रंग भी आया है। यह तो तय है कि उनसे मेरा बहुत ही अहम रिश्ता रहा है।
‘अगर वे बर्बाद नहीं होतीं, तो हम आबाद भी नहीं होते’
सच तो यह है कि अगर वे बर्बाद नहीं होतीं, तो हम आबाद भी नहीं होते। फिर ‘अर्थ’ नाम की फिल्म कभी बनती ही नहीं। परबीन और मेरी जिंदगी का अजीब कॉन्फ़िगरेशन था। उनकी तबाही ने मुझे आबाद किया। पहले उनके लिए मेरा और मेरे लिए उनका दिल धड़का, दिल टूटा और उसी कहानी से ‘अर्थ’ फिल्म बनी, जिससे लोगों का मनोरंजन हुआ। परवीन बॉबी से जब मैं अलग हुआ, तो वह बिछड़ना मुझे हमेशा याद रहेगा। उस दौरान मैंने उन्हें गले लगाया था। इस हग में बहुत ज्यादा प्यार था। न चाहते हुए भी हमारा बिछड़ना जरूरी था। वह एक ऐसा हग था, जो अपने आप में बहुत अलग था। जरूरी नहीं है कि जब हम मिलते हैं, वही हग याद रहे। जब दो लोग बिछड़ते हैं, तब एक-दूसरे को जिस तरह गले लगाते हैं उस अहसास की गहराई ताउम्र नहीं जाती। जब हम अपनों से बिछड़ते समय हग करते हैं, वह हग भुलाए नहीं भूलता।
‘सोलह की उम्र में पहली किरण के लिए धड़का था दिल’
ऐसा नहीं है कि पहली बार परबीन के लिए ही मेरा दिल धड़का हो। इससे पहले भी मेरा दिल धड़का था और वह भी केवल सोलह साल की उम्र में। यह दिल धड़का था चौदह साल की लड़की किरण के लिए। बाद में वह मेरी बेटी पूजा की मां भी बनीं। जिन लोगों ने फिल्म ‘आशिकी’ देखी है, उनको मैं बताना चाहता हूं कि उसमें जो कहानी है, वह मेरे और किरण के प्यार की सच्ची कहानी है। वह मैंने अपनी जिंदगी से ही चुराई थी। जिस दौरान किरण और मेरा इश्क हुआ, तब हम दोनों मुंबई स्कॉटिश स्कूल, माहिम में पढ़ते थे। वह अकेली थीं और मैं भी बिना बाप का लड़का था, तो अकेला सा ही था। उनसे इश्क परवान चढ़ा तो मेरी वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया, क्योंकि मैं खुद चलकर उनके पास गया था।
‘आज भी पूजा की मां किरण के लिए ही धड़कता है दिल’
आजकल वैलेंटाइन डे, हग डे, प्रपोज डे, चॉकलेट डे आदि चलते हैं। तब उनका इतना क्रेज नहीं था। उस वक्त उस 14 साल की लड़की को मैंने कैसे प्रपोज किया, वह बताता हूं। ‘आशिकी’ फिल्म में जैसे हीरो अपने टेलर के दोस्त के माध्यम से लवलेटर एक्सचेंज करता है। ऐसा ही हमारी रियल लाइफ में हुआ है। हमारा एक दोस्त टेलर था। उसके जरिए ही मैं और किरण लेटर पास किया करते थे, क्योंकि उस समय स्क्रीन टच करके दिल की बात किसी को भी भेज देने का सिस्टम नहीं था। आखिरकार वे मेरी जिंदगी में आईं। मैंने 17-18 साल की उम्र से वह रिश्ता निभाया। हालांकि मेरी जिंदगी में फिर दूसरी औरत आई, लेकिन रिश्ता तो आज भी उनसे जिंदा है। तो जो पूजा की मम्मी किरण थीं, पहली मर्तबा दिल उनके लिए ही धड़का था और आज भी धड़कता है।
(जैसा कि उमेश कुमार उपाध्याय को बताया)