अमित कर्ण \/ ज्योति शर्मा,मुंबई. <\/strong>फिल्म इंडस्ट्री में<\/strong>कई टैबू सब्जेक्ट्स पर फिल्में कर चुके आयुष्मान खुराना अब एक सबसे बड़े टैबू सब्जेक्ट समलैंगिकता पर बेस्ड फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ लेकर आरहे हैं। ऐसे सब्जेक्ट को बार-बार परदे पर उतारने में उनकी दिलचस्पी को लेकरसवालों की बौछार तो हाेना ही थी। हमने भी पूछे तीखे सवाल, पर आयुष्मान भी हर सवाल का सामना करने तैयार दिखे।<\/p>\n<\/p>\n भास्कर केसवालों परआयुष्मान के बेबाक जवाब<\/strong><\/u><\/p>\n<\/p>\n मैं फिल्में कम देखता हूं, किताबें ज्यादा पढ़ता हूं। मैंने ‘लाय विथ मी’ किताब पढ़ी, जो दो होमोसेक्सुअल कैरेक्टर्स पर थी। इसे पढ़कर मुझे इस क्लास कोस्वीकारना आ गया। यही तैयारी सबसे जरूरी थी। मुंबई आने से पहले होमोसेक्सुअलिटी को लेकर मेरा परसेप्शन अलग था। हमारा समाज दरअसल पिछले कुछ सालों में काफी बदला है। मैं 2004 या 2005 की बात कर रहा हूं। एक ऑल बॉयज स्कूल में था। वहां गे बॉयज क्लब था। वह अपने में मस्त रहते थे और अपने तरीके से प्रोग्राम करते रहते थे। उन्होंने एक बार मुझे इनवाइट किया था कि हमारी पार्टी है। आप आइए गिटार लेकर।<\/em><\/p>\n मैं डर गया। मैंने साफ कह दिया था कि, सॉरी, मैं अनकंफर्टेबल हूं। हालांकि अब सोचता हूं मुझे उस चीज का सम्मान रखना चाहिए था। उस पर डरने की क्या बात थी? लेकिन अब धीरे-धीरे मेरे अंदर यह बदलाव आया, जैसे दिल्ली में पहली जॉब की। वहां लोगों से मिला। उनके बारे में पढ़ा-जाना। फिर मुंबई में अगेन उनके बारे में जाना-समझा। पता चला, मेरी भी पुरानी सोच थी। अब मेरा नजरिया यह है कि मैं खुद ही तरह से एक एलजीबीटी कम्युनिटी का सपोर्टर बनगया हूं। मैं यह मानता हूं कि जो बदलाव मुझ में आया है वह बाकियों में भी आ सकता है।<\/em><\/p>\n <\/p>\n मैं ऐसे मुद्दे पर कमर्शियल फिल्म करना चाह रहा था। दो साल पहले आइफा के दौरान हितेश से मिला था। वो मुझे बोल रहा था कि मैं सीक्वल लिख रहा हूं। मैंने पूछा कि एक लाइन में बता दो कि कहानी क्या है? तो वो बोला बहुत अलग है, पर साफ-साफ कुछ नहीं बताया। फिर मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया तब उसने दबाव में आकर बता दिया कि होमोसेक्सुअलिटी पर फिल्म बना रहा हूं, तो मैं सचमुच में बहुत उत्साहित हो गया था। फिर हमने सोचा कि इसे ऐसे बनाएंगे जिससे फैमिलीज इससे कतराएं नहीं।<\/em><\/p>\n अब ऐसा है कि ये सीन फिल्म में दिखाना बहुत जरूरी था। काफी लोग बोलते हैं कि ऐसा करना प्राकृतिक नहीं है, ये सामान्य नहीं है। लेकिन किसके लिए क्या सामान्य है और क्या असामान्य, यह उनको डिसाइड करने दीजिए ना। जब मैं ड्रीम गर्ल की शूटिंग कर रहा था तो मैंने पार्किंग एरिया में दो लड़कों को एक दूसरे को किस करते हुए देखा। तब मुझे लगा कि हमारा देश इस तरहके विषय की फिल्म के लिए अब तैयार है। एक एक्टर होने के नाते आपको हर चीज करना पड़ती है, चाहे वो लड़की को किस करना पड़े या लड़के को किस करना पड़े। फिल्म की डिमांड केअनुसार कुछ भी करना पड़े मैं तैयार हूं।<\/em><\/p>\n <\/p>\n मुझे तो वैसे भी हो ओसीडी है। यानी कुछ भी खाओ तो माउथवाश करना ही होता है। मैं एक दिन में कम से कम तीन चार बार ब्रश करता हूं। किसी भी एक्टर के साथ किसिंग सीन कर रहे हैं तो उससे पहले आपकी सांसें फ्रेश होना यहतो एक गुड मैनर है ना। कोस्टार जीतू भी गर्म पानी पीता था। गरारे करता था। दो लोगों की केमिस्ट्री दिखाने के लिए कभी कभार किसिंग सीन जरूरी होता है। यह सीन हमारीफिल्म का सबसे अहम हिस्सा था।<\/em><\/p>\n जब हम दोनों ने स्क्रिप्ट सुनी तो हम तैयार थे इसके लिए, कोई हिचक नहीं थी। मुझे लगता है जो एक्टर होमोसेक्सुअलिटी के प्रति खुले विचार का है वह ये रोल करने से पीछे नहीं हटेगा। यदि हमारे ये फिल्म करने से होमोसेक्सुअलिटी का विरोध करने वाले लोग एंटरटेनमेंट के जरिए इसकी एक्सेप्टेंस का मैसेज लेकर जाते हैं तो इससे बड़ी बात नहीं हो सकती।<\/em><\/p>\n Download Newsnffeds App to read Latest Hindi News Today<\/a><\/p>\n\n
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