पटना. <\/strong>नागरिकता संसोधन कानून (सीएए) का विरोध कर रहे जदयू नेता प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को दो टूक जवाब दिया। नीतीश ने कहा कि जिसे जहां जाना है चला जाए, मेरी शुभकामनाएं साथ हैं। नीतीश ने कहा ये लोग विद्वान हैं। मैं इनकी इज्जत करता हूं, भले ही वे न करें।<\/p>\n<\/p>\n नीतीश ने कहा- मन में कुछ हो तो आकर बात करें<\/strong> प्रशांत किशोर ने अमित शाह को चुनौती दी थी<\/strong> पवन वर्मा ने पार्टी के खिलाफ पत्र लिखा था<\/strong> दिल्ली में जदयू का भाजपा से गठबंधन नहीं चाहते थे पवन वर्मा<\/strong> एक दिन पहले वशिष्ठ नारायण सिंह ने चेताया था<\/strong> 7 साल में5 नेतानीतीश का साथ छोड़ चुके आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें <\/a> <\/p>\n
नीतीश ने कहा कि कुछ लोगों के बयान से जदयू को नहीं देखना चाहिए। जदयू बहुत ही दृढ़ता से अपना काम करती है। हम लोगों का स्टैंड साफ होता है। एक भी चीज पर हम लोग कन्फ्यूजन में नहीं रहते हैं। अगर किसी के मन में कुछ है तो आकर बातचीत करनी चाहिए। पार्टी की बैठक में चर्चा करनी चाहिए।<\/p>\n<\/p>\n
प्रशांत किशोर ने हाल ही में मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद मीडिया से कहा था कि नीतीश ने कहा है कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। प्रशांत ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सीएए और एनआरसी लागू करने की चुनौती दे दी थी।<\/p>\n<\/p>\n
पूर्व सांसद पवन वर्मा ने सीएए पर पार्टी के फैसले के खिलाफ नीतीश कुमार को पत्र लिखा था। मंगलवार को पवन वर्मा ने कहा था कि नीतीश को एनआरसी और सीएए जैसे ज्वलंत मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। नीतीश ने मेरे पत्र का जवाब नहीं दिया है। जवाब मिलने के बाद तय करूंगा कि पार्टी में रहूंगा या नहीं।<\/p>\n<\/p>\n
पवन वर्मा नहीं चाहते थे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में जदयू भाजपा के साथ चुनावी मैदान में उतरे। उन्होंने इसके खिलाफ नीतीश को लिखे पत्र में अपनी बात रखी थी। गुरुवार को पवन ने कहा कि जदयू का भाजपा के साथ गठबंधन बिहार तक सीमित था। इसे दिल्ली में विस्तार दिया गया। मैंने तो यही प्रश्न किया था कि क्या यह फैसला पार्टी में विचार-विमर्श और वैचारिक स्पष्टिकरण के बाद लिया गया? सीएए पर वैचारिक मतभेद के चलते भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल ने दिल्ली में गठबंधन नहीं किया।<\/p>\n<\/p>\n
जदयू ने प्रशांत और पवन वर्मा के बयानों को अनुशासनहीनता माना है। बुधवार को प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा था कि वे इस मसले पर मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार से बात करेंगे। पवन हों या प्रशांत, इनकी जदयू के निर्माण में कोई भूमिका नहीं है। अगर उन्होंने किसी जगह जाने का मन बना लिया है तो स्वतंत्र हैं। उनके बयानों को देख कर लगता है कि वे दूसरी पार्टी के संपर्क में हैं। दिल्ली में जदयू-भाजपा और लोजपा का गठबंधन हो गया तो गलत क्या है? सीएए पर पार्टी का स्टैंड साफ है।<\/p>\n<\/p>\n
शरद यादव:<\/strong> 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से अलग होकर भाजपा से हाथ मिलाया और एनडीए में शामिल होकर सरकार बना ली। शरद ने इसे वोट पर डाका बताया और जदयू से निकल गए।
उदय नारायण चौधरी:<\/strong> उदय नारायण चौधरी भी शरद यादव के साथ ही जदयू से अलग हुए। 2005-2015 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे चौधरी को जदयू का एनडीए में शामिल होना मंजूर नहीं था।
जीतन राम मांझी:<\/strong> 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार का जिम्मा लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था। कुछ महीने बाद मांझी बगावती हो गए थे। पार्टी ने इस्तीफा मांगा तो उन्होंने इनकार कर दिया। फरवरी 2015 में बात फ्लोर टेस्ट तक पहुंची, लेकिन इससे पहले ही मांझी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जदयू भी छोड़ दी।
वृषिण पटेल:<\/strong> पटेल ने भी मांझी के साथ जदयू छोड़ा और दोनों नेताओं ने मिलकर हम पार्टी बनाई। वृषिण इन दिनों रालोसपा में हैं।
उपेंद्र कुशवाहा:<\/strong> उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में नीतीश का साथ छोड़ा और रालोसपा नाम की पार्टी बनाई।<\/p>\n