प्रणब मुखर्जी। भारतीय राजनीति में उनका नाम विरोधी भी सम्मान से लिया करते हैं। एक क्लर्क और एक टीचर से फिर सियासतदान और राष्ट्रपति बनने का सफर। प्रणब के राजनीतिक करियर में तीन बार ऐसे मौके आए, जब लगा कि प्रधानमंत्री वे ही बनेंगे, लेकिन तीनों बार प्रणब दा प्रधानमंत्री नहीं बन सके। वे कितने काबिल थे, इसका अंदाजा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान से लगा सकते हैं। तीन साल पहले मनमोहन ने कहा था- जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था।<\/p>\n
यहां हम आपको प्रणब के सियासी सफर और उन तीन मौकों के बारे में बता रहे हैं, जब प्रणब दा सत्ता के शीर्ष पर यानी प्रधानमंत्री पद तक पहुंच सकते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।<\/p>\n
1. इंदिरा की कैबिनेट में नंबर-2 रहे, उनके बाद प्रधानमंत्री नहीं बन सके<\/strong> इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुना। दिसंबर 1984 में लोकसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं। कैबिनेट में प्रणब को जगह नहीं मिली। बाद में उन्होंने लिखा- जब मुझे पता लगा कि मैं कैबिनेट का हिस्सा नहीं हूं तो दंग रह गया। लेकिन, फिर भी मैंने खुद को संभाला। पत्नी के साथ टीवी पर शपथ ग्रहण समारोह देखा।<\/p>\n दो साल बाद यानी 1986 में प्रणब ने बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) का गठन किया। तीन साल बाद राजीव से उनका समझौता हुआ और आरएससी का कांग्रेस में विलय हो गया।<\/p>\n 2. सात साल बाद दूसरी बार पीएम बनने का मौका हाथ से निकला<\/strong> 3. 2004 में सोनिया ने प्रणब की जगह मनमोहन को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना<\/strong> मनमोहन की कैबिनेट में भी नंबर-2 रहे प्रणब<\/strong> मनमोहन ने भी माना था- प्रणब ज्यादा क्वालिफाइड थे, लेकिन सोनिया ने मुझे चुना<\/strong> राजनीति में आने से पहले क्लर्क, टीचर थे<\/strong> मोदी ने कहा था- हमने प्रणब दा को उनके काम के लिए भारत रत्न दिया<\/strong> प्रणबदा के जीवन से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ सकते हैं…<\/strong><\/p>\n 1. अटलजी को असरदार और मोदी को तेजी से सीखने वाला पीएम मानते थे; मोदी ने कहा था- जब दिल्ली आया, तब प्रणब दा ने उंगली पकड़कर सिखाया<\/a><\/strong><\/p>\n 2. करियर की शुरुआत क्लर्क के तौर पर की थी, 1969 में राजनीति में आए और राष्ट्रपति बनने तक का सफर तय किया<\/a><\/strong><\/p>\n आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें <\/a> <\/p>\n
बात 1969 की है। इंदिरा के आग्रह पर प्रणब दा पहली बार राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे थे। इंदिरा गांधी राजनीतिक मुद्दों पर प्रणब की समझ की कायल थीं। यही वजह थी कि उन्होंने प्रणब दा को कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दिया। यह इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि इसी कैबिनेट में आर. वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेता थे।<\/p>\n
बात 1991 की है। राजीव गांधी की हत्या हुई। चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। माना जा रहा था कि इस बार प्रणब के मुकाबले कोई दूसरा चेहरा पीएम पद का दावेदार नहीं है, लेकिन इस बार भी मौका हाथ से निकल गया। नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रणब दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बनाया गया।<\/p>\n
फिर साल 2004 आया। कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं, लेकिन इसे भाजपा की ही हार माना गया। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर थी। सोनिया गांधी के पास खुद प्रधानमंत्री बनने का मौका था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रणब मुखर्जी का नाम फिर चर्चा में था, लेकिन सोनिया ने जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।<\/p>\n
2012 तक मुखर्जी मनमोहन सिंह की कैबिनेट में नंबर-2 रहे। प्रणब दा ने 2004 से 2006 तक रक्षा, 2006 से 2009 तक विदेश, और 2009 से 2012 तक वित्त मंत्रालय संभाला। इस दौरान वे लोकसभा में सदन के नेता भी रहे। यूपीए सरकार में उनकी भूमिका संकटमोचक की रही। 2012 में पीए संगमा को हराकर वे राष्ट्रपति बने। उन्हें कुल वोटों का 70 फीसदी हासिल हुआ। बाद में एक बार प्रणब दा ने कहा था- मुझे प्रधानमंत्री न बन पाने का कोई मलाल नहीं। मनमोहन इस पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति थे।<\/p>\n
मनमोहन ने 2017 में कहा था, “जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। प्रणब को प्रधानमंत्री नहीं बनाने का शिकवा करने का पूरा हक है।’’ यह बात मनमोहन ने प्रणब की ऑटोबायोग्राफी के विमोचन के मौके पर कही थी। समारोह में सोनिया और राहुल गांधी भी थे। मनमोहन की बात सुनकर मां-बेटे मुस्करा दिए थे।<\/p>\n
प्रणब दा को भारतीय राजनीति में एक विद्वान चरित्र के रूप में सम्मान हासिल रहा। उनके पास इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और कानून की डिग्रियां थीं। क्लर्क, पत्रकार और टीचर के तौर पर काम किया। फिर 1969 में पिता के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए राजनीति में आ गए। 2008 में उन्हें पद्म विभूषण और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।<\/p>\n
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल संसद में प्रणब दा के लिए कहा था, “उनकी (कांग्रेस की) सरकारों में नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह को भारत रत्न नहीं मिला। परिवार से बाहर किसी को नहीं मिला। प्रणब दा ने देश के लिए जीवन खपाया। हमने उन्हें भारत रत्न उनके काम के लिए दिया। अब जब हम सवा सौ करोड़ देशवासियों की बात करते हैं तो उसमें सभी आते हैं।”<\/p>\n