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लता मंगेशकर का 91वां जन्मदिन:दुनिया को 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने दिए, लेकिन पिता के सामने गाने से डरती थीं लता दीदी

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  • 75 साल से ज्यादा अरसे से वे फिल्म इंडस्ट्री में हैं, बचपन का नाम ‘हेमा’ था
  • 1999 में राज्यसभा सांसद बनीं, इसी साल उनके नाम पर परफ्यूम भी लॉन्च हुआ था
  • लता ने फिल्म ‘लेकिन’ को प्रोड्यूस किया था, जिसका संगीत आज भी यादगार है

‘भारत रत्न’ लता मंगेशकर ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। बकौल लता जी, ‘पिताजी जिंदा होते तो मैं शायद सिंगर नहीं होती’…ये मानने वाली महान गायिका लता मंगेशकर लंबे समय तक पिता के सामने गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं। फिर परिवार को संभालने के लिए उन्होंने इतना गाया कि सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं। 91वें जन्मदिन पर लताजी से जुड़े कुछ खास किस्से।

लता जब गातीं तो मां डांटकर भगा देती थीं

लता मानती हैं कि पिता की वजह से ही वे आज सिंगर हैं, क्योंकि संगीत उन्होंने ही सिखाया। जानकर आश्चर्य हो सकता है कि लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि बेटी गा भी सकती है। लता को उनके सामने गाने में डर लगता था। वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं। मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था।

पिता के शिष्य को सिखाया था सही सुर

एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे। दीनानाथ किसी काम से बाहर निकल गए। पांच साल की लता वहीं खेल रही थीं। पिता के जाते ही लता अंदर गई और गोखले से कहने लगीं कि वो गलत गा रहे हैं। इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया। पिता जब लौटे तो उन्होंने लता से फिर गाने को कहा। लता ने गाया और वहां से भाग गईं। लता मानती हैं ‘पिता का गायन सुन-सुनकर ही मैंने सीखा था, लेकिन मुझ में कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके साथ गा सकूं।’

सच हो गई पिता की भविष्यवाणी

इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया। छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई। उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे।

लता के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा। साथ ही लता यह भी मानती हैं कि पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बनती, क्योंकि इसकी उन्हें इजाजत नहीं मिलती।

13 की उम्र से संभाला परिवार

पिता की मौत के बाद लता ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं। 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में ‘पहिली मंगलागौर’ फिल्म में एक्टिंग की। कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया। पहली बार रिकॉर्डिंग की ‘लव इज ब्लाइंड’ के लिए, लेकिन यह फिल्म अटक गई।

ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक

संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया। शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी’। फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म ‘मजबूर’ के गीत ‘अंग्रेजी छोरा चला गया’ में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और ‘अनारकली’, ‘जिद्दी’ जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए।

कभी अचार-मिर्च से नहीं किया परहेज

करियर के सुनहरे दिनों में वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खा लिया करती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया। उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रही। 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म करने वाली वे पहली भारतीय हैं।

अपने सफर को जब लता याद करती हैं तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग वाली रातें भुलाए नहीं भूलतीं। तब दिन में शूटिंग होती थी और रात की उमस में स्टूडियो फ्लोर पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे। सुबह तक रिकॉर्डिंग जारी रहती थी और एसी की जगह आवाज करने वाले पंखे होते थे।

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