मुकेश महतो,उदयपुर.यह है फुटबॉल विलेज जावर माइंस। यहां देश की सबसे बड़ी जिंक खदानें हैं। लेकिन देश भर में इस आदिवासी गांव की पहचान मोहन कुमार मंगलम फुटबॉल टूर्नामेंट से है, जिसे पिछले 42 साल से खदान मजदूर करा रहे हैं। यहां पढ़ाई से ज्यादा फुटबॉल खेलकर लोगों को रोजगार मिलता है। इस गांव और आसपास 170 से अधिक लोग हैं, जो कभी इस टूर्नामेंट में खेले और इसी के दम पर कोई स्कूल में पीटीआई है तो कोई पुलिस सब इंस्पेक्टर। इस गांव के टूर्नामेंट से ही उभरने वाले कई खिलाड़ी भारतीय फुटबॉल टीम में कप्तान भी रह चुके।
राजस्थान के सबसे अनूठे फुटबॉल टूर्नामेंट मोहन कुमार मंगलम का फाइनल रविवार को एयरफोर्स दिल्ली और सिख रेजिमेंट जालंधर के बीच खेला गया। इसमें जालंधर ने एयरफोर्स की टीम को 2-0 से हरा दिया।
कभी पंचर फुटबॉल से खेलते थे, आज सभी बड़ी टीमें खेलने आती
इस गांव के 82 साल के रहमान खान पिछले 42 साल से हर टूर्नामेंट देखने आते हैं। वेटूर्नामेंट कापहला मैच खेलने वाले खिलाड़ी भी रहे हैं। उन्होंने बताया किइसकी शुरुआत4-5 लोगों के फुटबॉल खेलने से हुई।कई बार पंचर फुटबाल से ही लोगों ने प्रैक्टिस की। फिर यह अभ्यास मैच में बदला और बाद मेंमोहन कुमार टूर्नामेंट शुरू हुआ। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसाआयोजन हो जाएगा कि इससे देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ी भी निकलेंगे। आज कोई ऐसा राज्य नहीं, जहां से टीमें आवेदन नहीं करती।
एमकेएम फुटबॉल टूर्नामेंट महिलाओं की बराबरीका संदेश देता है
यहां महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलता है। स्टेडियम का एक हिस्सा पूरी तरह से उनके लिए रिजर्व रहता है जहां सैकड़ों की संख्या में महिलाएं, छात्राएं और बच्चियां बैठकर मैच देखती हैं। मैच देखने आई गांव की कमलाबाई बताती हैं कि यह टूर्नामेंट खेल के साथ एकता, समानता और आदिवासियों के खुले पारिवारिक माहौल की तस्वीर बयां करता है। मैच का उत्साह किसी पर्व से कम नहीं रहता। वे बताती हैं कि पूरे दस दिन घरों में भी पर्व जैसा माहौल रहता है।
उदयपुर शहर से लोग टूर्नामेंट देखने आते हैं
उदयपुर शहर से मैच देखने जाने वाली कोमल शर्मा बताती हैं कि उन्हें हर साल इस टूर्नामेंट का इंतजार रहता है। कहती हैं कि वह खुद फुटबॉल की फैन हैं, इसलिए फाइनल देखने परिवार के साथ आती हैं। वे बताती हैं यहां ग्रामीण बालिकाओं और महिलाओं में खेल को लेकर जो क्रेज देखने को मिलता है, वह शायद ही देश में कहीं हो। 10 साल की पारुल भी मैच इंजॉय करते हुए कहती है कि वह मैच से 2 घंटे पहले ही यहां आकर बैठ जाती है, वरना उसे पहाड़ी पर चढ़कर मैच देखना पड़ता है।
हजारों लोगों के जुटने के बाद भी आज तक थाने में कोई शिकायत नहीं हुई
एमकेएम टूर्नामेंट की खास बात यह है कि इसके प्रबंधन का जिम्मा अब भी जिंक खदान के मजदूरों पर है। आयोजकों के अनुसार दस दिन के कार्यक्रम में कई गांवों से हजारों लोग जुटते हैं। लेकिन कभी चोरी, लड़ाई या ऐसी किसी घटना की थाने में शिकायत नहीं मिली।