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हिंदू पक्ष के वकील रहे 92 साल के पाराशरण 7 साल की उम्र से रामायण का पाठ कर रहे, मुस्लिम पक्ष के वकील भी उनसे मिलने आते थे

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नई दिल्ली. अयोध्या विवाद मामले में हिंदू पक्ष के वकील रहे के. पाराशरण को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में प्रमुख जगह दी गई है। 92 वर्षीय पाराशरण के दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित आवास को ही ट्रस्ट का रजिस्टर्ड ऑफिस बनाया गया है। पाराशरण के पास वकालत का 60 साल से भी ज्यादा का अनुभव है। वे दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रहे। वाजपेयी सरकार में उन्हें पद्म भूषण और मनमोहन सरकार में पद्म विभूषण से नवाजा गया। वे राज्यसभा के भी मनोनीत सदस्य रहे। अयोध्या मामले पर 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 के बीच 40 सुनवाई हुई थीं। इस दौरान हमने पाराशरण की टीम के साथ एक दिन बिताया था। उनके सहयोगी और सुप्रीम कोर्ट के वकील भक्तिवर्धन सिंह से बातचीत के आधार पर हमें पाराशरण से जुड़े पहलुओं और अयोध्या केस की तैयारियों के बारे में जानने का मौका मिला।

भक्तिवर्धन सिंह बताते हैं, ‘‘1950 में पहली बार अयोध्या केस दाखिल हुआ था। 2010 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था। तब से मामला सुप्रीम कोर्ट में था। रोज सुनवाई के दौरान हमारा ऑफिस लगातार 24 घंटे खुला रहा। 40 लोगों की टीम ने रोज 18 घंटे काम किया। 2 अगस्त से हमारा यही रुटीन था। सबसे पहले हिंदू पक्ष की सुनवाई थी। शनिवार-रविवार को अगले सोमवार की तैयारी के लिए हमें ज्यादा काम करना होता था, क्योंकि पूरे हफ्ते में हमारे पास समय नहीं होता था। सैकड़ों कागजों की रोजाना 35 सेट में कॉपी होती थी। करेक्शन लगते थे।’’

पाराशरण सुनवाई के दौरान ढाई महीने 5 घंटे ही सोते थे
इस केस में पाराशरण जी के साथ-साथ वैद्यनाथन, नरसिम्हा, रंजीत कुमार और उनके सहयोगी श्रीधर पोट्‌टाराजू, मुकुल सिंह, योगेश्वरन, प्रणीत, अमित शर्मा जैसे जाने-माने वकीलों की पैनल लगातार काम करती थी। पाराशरण रात 11 बजे तक केस को लेकर ब्रीफ करते थे। इसके बाद सुबह 4 बजे से फिर तैयारी शुरू कर देते थे। 92 साल के पाराशरण रोज सुनवाई के दौरान ढाई महीने तक केवल 5 घंटे ही सोते थे। हमें भी सुबह 6 बजे आकर रात की तैयारी की पूरी जानकारी देनी होती थी। इन दो महीनों में हमारा नाश्ता पाराशरण जी के घर होता था तो डिनर वैद्यनाथन जी के यहां। पाराशरण-वैद्यनाथन जी का पूरा परिवार इस केस से जुड़ा था। हमें कहना ही नहीं पड़ता था कि हमें क्या चाहिए। घर के सदस्य चाय-नाश्ता-जूस लेकर आते जाते थे। सभी को लगता था कि इस मामले में उन्हें जो पार्ट मिला है, वो निभाना चाहिए।

आंखों के डॉक्टर को दिखाने नहीं गए, फोन पर दवा पूछ कर काम चलाया
पाराशरण तो 7 साल की आयु से लगातार रामायण पाठ कर रहे हैं। वे केवल लॉ में नहीं, बल्कि शास्त्रों में भी सिद्धहस्त हैं। वे कहते थे कि शायद इसी वजह से इस उम्र में उन्हें राम मंदिर मामले की पैरवी का मौका मिला। पाराशरण की आंखों में बहुत तकलीफ थी। डॉक्टर को दिखाने चेन्नई जाना था, लेकिन केस के चलते नहीं गए। केवल फोन पर ही दवा पूछ ली और केस की तैयारी करते रहे। वे हमसे कहते थे कि आप लोग केस को केस की तरह लिया करो। व्यक्तिगत तौर पर अटैच नहीं होना चाहिए। लेकिन जैसे-जैसे केस की सुनवाई आगे बढ़ती गई, कई बार हमें उनसे कहना पड़ा कि सर आप केस से पर्सनली जुड़ रहे हैं।

आस्था के हिसाब से दलील केस को कमजोर करती : पाराशरण के सहयोगी वकील
हमारे लिए अयोध्या मामला पहले आस्था का विषय था। लेकिन ये प्रोफेशनल कमिटमेंट भी था। कई जगह हमें लगा कि हमें आस्था के अनुसार दलील देनी चाहिए, लेकिन वो हमारे केस को कमजोर करतीं। हम ऐसी दलीलें कोर्ट के सामने नहीं लाए। इस केस में फैक्ट्स बहुत ज्यादा थे और उतना ही लॉ था। सीपीसी (कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर) की एक पूरी थीसिस थी। ऐसा कोई भी प्रोविजन नहीं था, जो इस केस में लागू न हुआ हो। संविधान के भी बहुत सारे प्रोविजन, एवीडेंस एक्ट सहित बहुत सारे एक्ट से जुड़ी बातें इस केस में थीं।

केस में जनवभावना का बहुत ज्यादा दबाव था
इस केस में हमारी टीम पर जनभावना का दबाव सबसे ज्यादा था। लोग हमें ईमेल, वॉट्सऐप, मैसेज से केस के बारे में सलाह देते थे। जैसे स्कंद पुराण पर हमें लोगों ने बताया कि इसमें क्या उल्लेख है। हमें किस किताब के किस पेज पर काम की चीज मिल सकती है, ये भी बताते थे। कई लोग तो हमें डांटते थे कि ये दलीलें होना चाहिए और आप दूसरी दलीलें दे रहे हैं। आपको इस तरह से कोर्ट में अपनी बात रखनी चाहिए। इस तरह के मैसेज का भी हमारे पास अंबार है। हम इससे कई बार चिढ़ जाते थे और कहते थे कि ऐसे लोगों को ही पैरवी करने ले आते हैं। इस पर पाराशरण सर हमेशा कहते थे कि लोग अयोध्या मामले को अपना केस समझते हैं। सुझावों को पॉजिटिवली लो। फिर हमें भी समझ आया कि वे गलत नहीं कह रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के ज्यादातरसदस्य पाराशरण को गुरु मानते हैं
केस की जुड़ी एक और खास बात। कोर्ट के अंदर या बाहर, सभी वकीलों का बर्ताव बहुत ही सहज और सरल होता था। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के ज्यादातर सदस्य पाराशरण को गुरु मानते हैं। मुस्लिम पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे राजीव धवन रोज आकर पाराशरण से मिलते और उन्हें नमस्कार करते थे। पाराशरण अपनी सीट से उठकर उन्हें शुभकामनाएं देते थे। दोनों पक्ष एक-दूसरे को बताते थे कि कोर्ट में आपने ये अच्छी दलील दी। वो भी हमें बताते थे कि आज हम कहां बेहतर थे। राजीव धवन भी हमारा उत्साह बढ़ाते हुए कहते थे कि आप बढ़िया मेहनत कर रहे हो।

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के. पाराशरण (दाएं से दूसरे) सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के साथ। (फाइल)