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निहंग वैसे नहीं होते, जिन्होंने पटियाला में पुलिस पर हमला किया; ये तो शौर्य, अनुशासन और सेवाभाव से भरी गुरु की लाड़ली फौज है

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‘आए ने निहंग, बुआ खोल देओ निसंग, निहंग कहावे सो पुरख, दुख सुख मने न अंग’ यानी गुरु की इस लाड़ली फौज को समाज में वो दर्जा हासिल था कि बोला जाता था घर का दरवाजा निसंग खोल दो, डरने की बात नहीं है, निहंग आ गए हैं। निहंग सिख यानी बेहद जोशीली, सम्मानित हथियारबंद सिख कौम। जो बाणा और बाणी के आधार पर दूसरे पगड़ीधारी सिखों से थोड़ी अलग है। इनके हथियार, लड़ाकापन, शौर्य, मार्शल आर्ट, नित-नियम को लेकर सख्ती और दुनियावी चीजों से इनका बेलागपन इन्हें दूसरों से अलग करता है। नीले चोले में, केसरिया परने से कमर बांधे, पगड़ी में तरह-तरह के हथियार, दुमाला, खांडा, बरछा या तलवार लेकर चलने वाले इन निहंगों की दुनिया ही अलग है।

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में आननंदपुर साहिब की धरती पर श्री केशगढ़ साहिब में खालसा पंथ साजा था। उस वक्त उन्होंने पांच प्यारों को अपना बाणा और बाणी दी। निहंग सिख वही हैं, जिन्होंने उस बाणा और बाणी को अभी तक संभाल कर रखा है। इन्हें गुरु की लाड़ली फौज भी कहा जाता हैं। इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के साथ कई जंग में निहंगों की शौर्य गाथाएं मिलती हैं। अब जंग तो नहीं होती, मुंगल और अंग्रेज भी चले गए, लेकिन निहंग सिखों का शौर्य, लड़ाकापन और रसूख वैसे का वैसा ही है।

निहंगों का जंगी अभ्यास गतका, इनकी भाषा भी जंगी
इनका जंगी अभ्यास गतका है, जिसने दुनिया को हैरत में डाल रखा है। इस वक्त निहंगों के कई सेक्ट हैं, लेकिन मुख्य रूप से सबसे बड़ा सेक्ट बुड्ढा दल है। इसके पहले मुखी बाबा बिनोद सिंह गुरु गोबिंद सिंह के साथ अनेकों जंगों में रहे। दल के 14वें मुखी जत्थेदार बाबा बलबीर सिंह अकाली दैनिक भास्कर को बताते हैं कि 1708 में गुरु गोबिंद सिंह चमकौर साहिब, मुक्तसर, तलवंडी साबो होते हुए श्री नांदेड़ साहिब पहुंचे, जहां उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहब को गुरुआई बख्श दी। उधर पंजाब में जोर जब्र बढ़ रहा था। अत्याचार बढ़ रहा था। गुरु गोबिंद सिंह ने निहंग फौजों को पंजाब जाने का हुक्म दिया। बाबा बिनोद सिंह की अगुआई में बंदा सिंह बहादुर के साथ 25 निहंगों को पंजाब भेजा गया। निहंगों की भाषा आज भी जंगी भाषा ही है। यह भाषा उस वक्त जंग के समय इस्तेमाल की जाती थी। बाबा बलबीर बताते हैं कि हम एक-एक योद्धा को सवा लाख कहते हैं।

मुगलों के साथ युद्ध में बाबा बिनोद शहीद हो गए थे। इतिहास में बुड्ढा दल की कुर्बानी और लड़ाइयों का अहमियत से जिक्र है। चाहे वो दिल्ली फतह करने का मामला हो या फिर काबुल-कंधार तक रियासत कायम करने का, बाबा दीप सिंह जी, बाबा नौद सिंह जी, बाबा सुखा जी, बाबा महताब सिंह की मुगलों और अंग्रेजों के साथ लड़ाइयां सिखों की शौर्य गाथाएं हैं।

रात 1 बजे ही नहा लेते हैं निहंग, घोड़े को भाईजान कहते हैं
निहंग सिख अपने नियमों का पालन बेहद कड़ाई से करते हैं। वे रात के एक बजे नहाते हैं। उसके बाद बाणी का पाठ। सुच-सुंजम का बहुत ख्याल रखा जाता है। खाना या लंगर पकाने से पहले पंज स्नाना किए जाते हैं। शौच जाने के बाद पंज स्नाना किए जाते हैं। सिखी का प्रचार करना और जंगी अभ्यास करना इनका काम है। गतका और घुड़सवारी में इनका कोई सानी नहीं। यह अपने घोड़े को भाईजान कहते हैं। घोड़ा इनकी जान होता। इस वक्त में निहंग स्कूल चलाते हैं और कार सेवा करते हैं। कश्मीर की बाढ़ में बुड्ढा दल ने बड़ा योगदान दिया था। इन दिनों भी वे राशन बांट रहे हैं। ये चोला पहनते हैं, कमर को बांधकर रखते हैं। पगड़ी पर चक्रतोला रहता है। कलगी रहती है और कई तरह के हथियार रहते हैं। तलवार होती है। पाठ और कीर्तन करते हैं।

लंबे अरसे से गुरुद्वारों और डेरों की संभाल निहंग सिख करते आ रहे हैं। 1920 तक बुड्ढा दल के मुखी अकाल तख्त के मुखी भी हुआ करते थे। जत्थेदार बलबीर सिंह और जत्थेदार अवतार सिंह बताते हैं कि असली निहंग ऐसा कर ही नहीं सकता जो पटियाला में हुआ। अब कोई भी दुकानदार नीला चोला पहनकर गुंडागर्दी कर दे तो उसे निहंग नहीं कहा जा सकता। वे कहते हैं कि पंजाब सरकार को इसकी तह तक जाना चाहिए कि गुरुद्वारे में पैसा और बारूद कहां से आया? क्या उद्देश्य था? लेकिन मीडिया इन गुंडों को निहंग कहना बंद करे।

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इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के साथ कई जंग में निहंगों की शौर्य गाथाएं मिलती हैं। अब जंग तो नहीं होती, लेकिन निहंग सिखों का शौर्य, लड़ाकापन और रसूख वैसा ही है। (फाइल फोटो)