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जब नेहरू कैबिनेट शपथ ले रही थी, गांधीजी कलकत्ता में प्रार्थना सभाओं के जरिए दंगे रोक रहे थे

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नई दिल्ली. संसद भवन में 14 अगस्त 1947 को रात 11 बजे ही स्वतंत्रता दिवस के लिए आधिकारिक उत्सव शुरू हो गया था। पहले वंदेमातरम् गाया गया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ दिया। आधी रात को शुरू हुआ यह जश्न अगले दिन भी जारी रहा, लेकिन इस पूरे जश्न से महात्मा गांधी नदारद थे। जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के अनुरोध के बावजूद वे स्वतंत्रता दिवस के जश्न में शामिल नहीं हुए। इस दिन महात्मा गांधी राजधानी से करीब 1500 किलोमीटर दूर कलकत्ता के दंगाग्रस्त इलाकों में हिंदू-मुसलमानों के बीच सद्भाव लाने की कोशिश कर रहे थे।

मौलाना अबुल कलाम आजाद कह रहे थे कि विभाजन मेरे लिए जहर के समान है। खान अब्दुल गफ्फार खान चीख रहे थे कि विभाजन मेरी चौड़ी छाती पर कुल्हाड़ी की तरह है और महात्मा गांधी आजादी की रोशनी में नहा रही दिल्ली से दूर कलकत्ता में लाशों के बीच सुबक रहे थे। सच रो रहा था और झूठ का राजतिलक हो रहा था। इधर हिंदुस्तान में, उधर पाकिस्तान में।

14 अगस्त की शाम : दिल्ली में जश्न की तैयारी और कलकत्ता में गांधी की चमत्कारिक प्रार्थना सभा
आधी रात को मिली आजादी पर जब देशभर में शंखों और घंटियों की गूंज सुनाई दे रही थी, उस वक्त महात्मा गांधी कलकत्ता के हैदरी मंजिलमें थे। उनके लिए यह रात भी एक सामान्य-सी रात थी। 12 अगस्त से वे इसी घर से पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे दंगों को रोकने के लिए प्रार्थना सभाएं कर रहे थे। कलकत्ता के कुछ हिस्सों में उन दिनों हालात बेहद खराब थे। गांधी जब 13 अगस्त को इन इलाकों में पहुंचे, तब उनकी गाड़ी पर भी पथराव हुआ। लेकिन अगले 2 दिनों के अंदर उन्होंने लाशों से पटे इस हिस्से में शांति ला दी। 14 अगस्त की शाम जब दिल्ली में जश्न की तैयारियां अंतिम दौर पर थीं, महात्मा गांधी इसी हाउस के आंगन में प्रार्थना सभा कर रहे थे।

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गांधीजी ने कहा था- आजादी का ऐसा आगमन मुझे आनंदित नहीं कर रहा
उस दिन हिंसा से सिहरते कलकत्ता के उस टूटे-फूटे मकान के आंगन में उनकी यह प्रार्थना सभा एक चमत्कार की तरह थी। इस सभा में उन्होंने कहा, ”कल से हम अंग्रेजी राज से मुक्त हो जाएंगे, लेकिन आधी रात को भारत के दो टुकड़े भी हो जाएंगे। कल का दिन आनंद का होगा, लेकिन उतने ही दुख का भी होगा। यह आजादी हमें एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप रही है। हमें अपना विवेक और भाईचारा नहीं छोड़ना है। यदि इस विवेक और भाईचारे की रक्षा कलकत्ता में हो गई, तो समझ लीजिए कि सारे देश में हो गई। कलकत्ता के उदाहरण से सारे देश की मानवता जाग जाएगी। आजादी का ऐसा आगमन मुझे आनंदित नहीं कर रहा। कल स्वतंत्रता दिवस पर मैं उपवास रखूंगा। भारत के कल्याण के लिए प्रार्थनाएं करूंगा, चरखा कातूंगा। आप लोग भी इसमें मेरा साथ दें। उपवास रखें, प्रार्थना करें और चरखा कातें।”

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इसी प्रार्थना सभा से ठीक पहले शहर में एक जुलूस निकाला गया, जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों ने बराबरी से भाग लिया। यह जुलूस गांधीजी के निवास स्थान हैदरी मंजिल तक पहुंचा। एक दिन पहले तक जो कलकत्ता जल रहा था, उसका माहौल इस जुलूस के साथ ही बदला हुआ नजर आया। 24 घंटे पहले जो लोग एक-दूसरे का गला काट रहे थे, वे इस जुलूस में हाथ मिलाते और खिलखिलाते दिखे। ये गांधीजी की पिछले दो दिनों की प्रार्थना सभाओं का कमाल था।

15 अगस्त : सुबह दो पत्र लिखे, दोपहर को बंगाल में सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं से मिले; शाम को प्रार्थना सभा की

मित्र अगाथा और रामेन्द्र जी सिन्हा को पत्र
गांधी जी के लिए 15 अगस्त की सुबह भी आम सुबह की तरह ही थी। उन्होंने दो पत्र लिखे। एक पत्र उन्होंने अपनी लंदन की मित्र अगाथा हैरीसन को लिखा और दूसरा रामेन्द्र जी सिन्हा को। अगाथा हैरीसन को उन्होंने अपने स्वतंत्रता दिवस मनाने का तरीका बताते हुए लिखा, ”यह पत्र मैं चरखा कातते हुए लिख रहा हूं। तुम जानती हो कि आज जैसे बड़े अवसरों को मनाने का मेरा तरीका यह है कि मैं भगवान को धन्यवाद दूं और प्रार्थना करूं। प्रार्थना के साथ उपवास रखना भी जरूरी है और गरीबों के संघर्ष से जुड़ने और समर्पण के लिए चरखा कातना भी जरूरी है। इसलिए जितना चरखा मैं रोज कातता हूं, उससे कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए और अपने दूसरे कामों के साथ जितना हो सके, उतना इसे करना चाहिए।”

गांधीजी ने इस पत्र में अगाथा को अपनी व्यस्तता भी बताई। उन्होंने लिखा, तुमने विंटर्टन के भाषण में मेरा जिक्र किया, लेकिन मैं उसे पढ़ नहीं पाया। इंडिपेंडेस बिल पर हुई बहस के दौरान हुए भाषणों को भी मैं नहीं पढ़ सका। मुझे अखबार पढ़ने का समय ही नहीं मिलता। गांधीजी ने आगे यह भी लिखा कि तुम्हें और मुझे तो जितना अच्छे से हो सके, अपना काम करते रहना चाहिए और खुश रहना चाहिए। अब मैं चरखा बंद करने वाला हूं।मुझे और काम करने हैं।

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अहिंसा से भरी वीरता कई तरह से दिखती है

इसके बाद गांधीजी रामेंन्द्र जी सिन्हा के पत्र का जवाब दिया। रामेन्द्र जी सिन्हा ने गांधीजी को बताया था कि कैसे दंगों को रोकने की कोशिश में उनके पिता की जान चली गई। इसके जवाब में गांधीजी ने लिखा, ”आपके पिता में वीरों वाली अहिंसा थी। अहिंसा से भरी वीरता कई तरह से दिखती है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपको किसी हत्यारे के हाथ मरना पड़े। आपके पिता जैसे लोग कभी नहीं मरते। ऐसे वीर पिता की मृत्यु के लिए आपका या आपकी मां का या फिर किसी का भी शोक करना ठीक नहीं है। अपनी इस मृत्यु से उन्होंने एक समृद्ध विरासत छोड़ी है। मैं यही सलाह दे सकता हूं कि आज हमें जो आजादी मिली है, उसको बनाए रखने के लिए आप सभी को हरमुमकिन कोशिश करनी चाहिए।

पश्चिम बंगाल के मंत्रियों को सत्ता से सावधान रहने की चेतावनी
15 अगस्त की सुबह ही पश्चिम बंगाल के मंत्रियों ने गांधीजी से मुलाकात की। उन्होंने मंत्रियों को आजादी की शुभकामनाएं तो दीं, साथ ही एक चेतावनी भी दी। गांधीजी ने मंत्रियों से कहा, आज से आपको कांटों का ताज पहनना है। सत्य और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए निरंतर कोशिश करते रहना है। विनम्र रहें, धैर्यवान बनें। अंग्रेजों के शासन ने आपकी कड़ी परीक्षा ली है, लेकिन आगे भी यह परीक्षा बार-बार होती रहेगी। सत्ता से सावधान रहें, यह भ्रष्ट बनाती है। इसकी चमक-दमक में खुद को फंसने मत दें। आपको याद रखना है कि आपको भारत के गांवों में रह रहे गरीब की सेवा के लिए यह सत्ता मिली है। ईश्वर आपकी सहायता करे।’

राजगोपालाचारी ने दंगे रुकने पर बधाई दी तो गांधीजी बोले- अभी मुझे तसल्ली नहीं हुई
पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल सी राजगोपालाचारी भी इस दिन गांधीजी से मिले। उन्होंने हैदरी मंजिल आकर गांधीजी को शहर में हो रहे दंगों को चमत्कारिक रूप से रोकने पर बधाई दी। इस पर गांधी जी का जवाब था, मुझे तब तक तसल्ली नहीं होगी, जब तक हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के साथ सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे और अपने घर लौटकर पहले की तरह जीवन बसर शुरू नहीं करेंगे। गांधीजी ने इस मुलाकात में यह भी कहा था कि अभी भले ही जोश दिख रहा हो, लेकिन जब तक दिल पूरी तरह नहीं मिलते, तब तक आगे फिर हालात बिगड़ने की आशंका बनी रहेगी।

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कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों से मतभेद भुलाकर काम करने को कहा
15 अगस्त को दोपहर करीब दो बजे, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ गांधीजी ने बातचीत की। इसमें गांधीजी ने कहा कि राजनीतिक कार्यकर्ता साम्यवादी हों या समाजवादी, उन्हें आज से सारे मतभेद भुलाकर कई बलिदान, त्याग और मेहनत से हासिल इस आजादी को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कम्युनिस्ट नेताओं से यह सवाल भी किया था कि क्या हम इस आजादी को टुकड़ों में बिखरने दें? इसी दौरान उन्होंने आजादी के मौके पर आयोजित समारोह में शामिल न होने पर कहा था कि वे इस जश्न में शामिल नहीं हो सके, इसके लिए उन्हें अफसोस है और वे माफी भी चाहते हैं।

छात्रों के साथ बैठक में बोले- ध्यान रखें कि आपके हाथों कोई गलत काम न हो
पश्चिम बंगाल के पक्ष-विपक्ष के नेताओं से मिलने के बाद गांधीजी ने छात्र-छात्राओं के साथ एक बैठक की। इसमें उन्होंने बताया कि क्यों अब दंगे बंद हो जाना चाहिए? उनका कहना था, ”हमारे पास अब दो देश हैं। दोनों में ही हिंदू और मुस्लिम नागरिकों को रहना है। अगर दंगे जारी रहते हैं तो दो देशों की अवधारणा का अंत हो जाएगा। आपको इस पर अच्छे से विचार करना चाहिए। आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि आपसे कोई गलत काम न हो।” गांधीजी ने इस बातचीत में यह भी कहा कि भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए परेशान करना गलत है कि उसका धर्म अलग है। छात्रों को एक ऐसा नया भारत बनाने के लिए हरमुमकिन कोशिश करनी चाहिए जिस पर सभी गर्व करे।

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प्रार्थना सभा में 30,000 लोगों को संबोधित किया, आजादी का संयम से इस्तेमाल करने की सलाह दी
रोज की तरह 15 अगस्त की शाम फिर हैदरी मंजिल में प्रार्थना सभा हुई। करीब 30,000 लोग प्रार्थना सभा में मौजूद थे। इस प्रार्थना सभा में गांधीजी ने शहर में पिछले 2 दिनों से छाई शांति के लिए लोगों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, ”जो एकता और मानवता आप लोगों ने दिखाई है, उससे पंजाब के लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।” गांधीजी ने उम्मीद जताई कि हावड़ा सहित पूरा कलकत्ता सांप्रदायिकता से मुक्त होगा। गांधीजी ने लोगों को आजादी का बुद्धिमानी और संयम के साथ इस्तेमाल करने की भी सलाह दी। यह सलाह गांधीजी ने उस घटना के संदर्भ में दी, जिसमें लोगों ने आजादी की खबर सुनकर गवर्नर हाउस पर कब्जा कर लिया था। गांधीजी ने कहा कि इस आजादी के साथ लोग अगर यह सोच रहे हैं कि वे सरकारी या किसी दूसरी संपत्ति के साथ जो चाहे कर सकते हैं तो उन्हें बहुत दुख होगा।

(‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी’ और लैरी कॉलिन्स व डॉमिनिक लैपियर की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ से)

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15 अगस्त 1947 को कलकत्ता की हैदरी मंजिल में महात्मा गांधी