केंद्र सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने सोमवार को जीडीपी के आंकड़े जारी कर सबको चौंका दिया। सबको अंदाजा था कि जीडीपी दर गिरने वाली है। पिछले पांच महीने कोरोना के लॉकडाउन का असर था ही। लेकिन गिरावट अंदाजे से बढ़कर निकली।
अर्थशास्त्री सोच रहे थे कि गिरावट 20% के आसपास रहेगी, लेकिन वह 23.9% यानी करीब 24% रही। इसके बाद भी ज्यादातर लोग अब भी सोच रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से उनकी जेब पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उनकी जिंदगी जैसी थी, वैसी ही रहेगी। जबकि सच यह नहीं है। आइए, बताते हैं यह कैसे आप पर असर डालने वाली है?
सबसे पहले, क्या है नए आंकड़े?
- कोरोनावायरस के चलते इस वित्त वर्ष के शुरुआती तीन महीने (अप्रैल-जून) लॉकडाउन में रहे। इसका असर यह हुआ कि गुड्स और सर्विसेस के कुल उत्पादन में भी गिरावट आई, जिसे हम जीडीपी कहते हैं। दरअसल, यह ही बताता है कि देश तरक्की कर रहा है या संकट में है।
- नए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अप्रैल-जून पीरियड की तुलना में इस साल खेती-किसानी को छोड़कर बाकी सभी सेक्टरों में गिरावट दर्ज हुई। यह गिरावट 24% के करीब रही है। यानी अब तक हर साल पिछले साल के मुकाबले जीडीपी बढ़ती थी, इस बार घट गई है।
- जीडीपी में 8 सेक्टर महत्वपूर्ण हैं। इनमें कृषि सेक्टर की ग्रोथ रेट 3.4 प्रतिशत रही है। इसके अलावा बाकी सभी सेक्टर-माइनिंग सेक्टर (-23.3%), मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर (-39.3%), कंस्ट्रक्शन सेक्टर (-50.2%) की गिरावट आई है।
अब जानिए इस गिरावट का क्या असर होगा?
- अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरावट को देखकर कह सकते हैं कि इसका असर पूरे साल रहने वाला है। यानी इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है। इससे रोजगार के अवसरों में गिरावट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
- 1990 के दशक में जब भारत ने अपना बाजार दुनियाभर के लिए खोला, तब से हमने औसत 7 प्रतिशत की दर से तरक्की की है। अब, इस बार इतनी ही गिरावट होने वाली है। मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग, कंस्ट्रक्शन जैसे जिन सेक्टरों में गिरावट हुई है, वह सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले सेक्टर है।
- प्रत्येक सेक्टर में गिरावट को देखते हुए कहा जा सकता है कि उस क्षेत्र से जुड़े लोगों का उत्पादन और कमाई घट रही है। इसका मतलब यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं या गंवाने वाले हैं। साथ ही नई नौकरियों को हासिल करने में भी दिक्कत हो सकती है।
जीडीपी की घट-बढ़ के लिए क्या जिम्मेदार है?
- जीडीपी को बढ़ाने या घटाने के चार महत्वपूर्ण इंजन होते हैं। पहला है, आप और हम। आप जितना खर्च करते हैं, वह हमारी अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान देता है। पिछले साल यानी 2019-20 की पहली तिमाही की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी लगभग 56% है।
- दूसरा ग्रोथ इंजन होता है प्राइवेट सेक्टर की बिजनेस ग्रोथ। यह जीडीपी में 32% योगदान देती है। इसी तरह सरकारी खर्च (11%) इसका तीसरा ग्रोथ इंजन है। सरकारी खर्च से मतलब यह है कि सरकार का गुड्स और सर्विसेस प्रोड्यूस करने में क्या योगदान है।
- जीडीपी का चौथा और महत्वपूर्ण इंजन है- नोट डिमांड का। इसके लिए भारत के कुल एक्सपोर्ट को कुल इम्पोर्ट से घटाया जाता है। भारत के केस में एक्सपोर्ट के मुकाबले इम्पोर्ट ज्यादा है, इस वजह से इसका इम्पैक्ट जीडीपी पर निगेटिव ही रहा है।
1/n Just a quick short note on GDP numbers Apr-June 2020 whether in India (YOY numbers – no seasonal adjustment) and US (quarterly numbers seasonally adjusted). By definition, when the economy suffers an outlier shock, seasonal adjustments are not that meaningful
— Surjit Bhalla (@surjitbhalla) September 1, 2020
2/n NOR are yoy comparisons that meaningful – both are incorrect and incomplete – No one expects annual GDP in US to be -31 % for FY21 nor India to be -24 % – India is still expected to be one of the fastest growing major economies in FY 21. hence, we will all have to wait & see.
— Surjit Bhalla (@surjitbhalla) September 1, 2020
n/n My simple point in original tweet was to show that a quarterly SA growth estimate was NOT comparable to a YOY estimate; nor is Apr-June quarterly figure of much meaning in first quarter of a pandemic year. cross-country comparisons at this point are not valid.
— Surjit Bhalla (@surjitbhalla) September 1, 2020
जीडीपी में गिरावट की वजह क्या है?
- ग्रोथ इंजन में गिरावट ही मुख्य वजह है। आइए बताते हैं- किस तरह। हमारी-आपकी खपत यानी प्राइवेट कंजम्प्शन 27 प्रतिशत तक घटा है। इसी तरह बिजनेस इन्वेस्टमेंट में 50 प्रतिशत तक गिरावट आई है। ऐसे में जीडीपी में 88% योगदान रखने वाले दो इंजन रुक गए हैं।
- पहली तिमाही में एक्सपोर्ट ज्यादा हुआ और इम्पोर्ट कम। जाहिर है, पेट्रोल-डीजल की खपत कम होने का असर है। वहीं, सरकारी खर्च 16% तक बढ़ा है। लेकिन यह बाकी सेक्टर से हुए नुकसान की महज 6% भरपाई कर पाया है। जाहिर है, इससे ग्रोथ का इंजन गति नहीं पकड़ सका।
…तो सरकार खर्च क्यों नहीं बढ़ा रही?
- सीधा-सा लॉजिक यह है कि जब आय कम होती है, लोग खपत कम कर देते हैं। जब खपत कम होती है, बिजनेस इन्वेस्ट करना बंद कर देते हैं। यह दोनों ही फैसले स्वैच्छिक है। लोगों या बिजनेस पर आप खर्च बढ़ाने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते। इसके लिए माहौल बनाना होगा।
- ऐसे में जीडीपी को बूस्ट देने के लिए सरकारी खर्च की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि सरकार सड़कों, भवनों, सेलरी चुकाने या डायरेक्ट अकाउंट में पैसा डालकर खर्च बढ़ाएगी तो कम अवधि में जीडीपी में सुधार हो सकता है। यदि खर्च नहीं बढ़ा तो रिकवरी में लंबा वक्त लगेगा।
- कोरोनावायरस संकट से पहले से ही सरकारी खर्च पर बहुत ज्यादा दबाव रहा है। अन्य शब्दों में उस पर सिर्फ कर्ज का दबाव नहीं है बल्कि उसे जितना कर्ज लेना चाहिए था, उससे ज्यादा वह ले चुकी है। ऐसे में सरकार के पास खर्च बढ़ाने के लिए ज्यादा पैसा नहीं बचा है।
रिकवरी का रास्ता आखिर क्या है?
- यह तो साफ है कि मैन्युफैक्चरिंग से लेकर माइनिंग, कंस्ट्रक्शन से लेकर रियल एस्टेट, हॉस्पिटेलिटी से लेकर ट्रेड तक लॉकडाउन ने किसी को भी नहीं छोड़ा है। जब जमींदोज हो गए हैं। अब सवाल यह उठता है कि यह असर कब तक रहेगा?
- सब उम्मीद लगाकर बैठे थे कि यह गिरावट वी आकार में होगी। यानी जिस रफ्तार से गिरावट होगी, उसी रफ्तार से रिकवरी भी होगी। लेकिन इसके लिए सरकार को प्रोत्साहन उपाय करने होंगे जिससे डिमांड बढ़ सके और लोगों का भरोसा लौट सके।
- इसके लिए लोगों की आय और उत्पादन बढ़ना जरूरी है। डिमांड बढ़ने पर ही लोग अपनी क्षमता के अनुसार खर्च करने लगेंगे। लेकिन, अब लग रहा है कि रिकवरी वी शेप की नहीं है। भारत में 1979 के बाद से जीडीपी ग्रोथ में गिरावट नहीं आई है।
- एक्सपर्ट्स की माने तो रिकवरी तभी आएगी, जब हम और आप खर्च करने लगेंगे। इससे ही मार्केट में नया निवेश आएगा और बिजनेस निवेश बढ़ाएंगे। निश्चित तौर पर यह भारत में कंजम्प्शन साइकिल को मजबूती देगा और काम के नए अवसर बढ़ेंगे।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें